राष्ट्रीय एकता पर निबंध | National Unity Essay in Hindi

National Unity Day in Hindi

हमारा भारत देश एक ऐसी भूमि है जहां इसकी अपनी अनोखी संस्कृति और विविध जीवन शैली को मानने वाले विरोधी लोग एक साथ रहते हैं। ये बात तो काफी स्पष्ट है कि हमें हमारे जीवन में राष्ट्रीय एकीकरण के अर्थ को समझने की जरूरत है और अपने देश को एक पहचान देने के लिये सब कुछ मानना, पहचानना होगा। भारत के नागरिक विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति, समुदाय, नस्ल और सांस्कृतिक समूह से संबंध रखते हैं और वे प्राचीन काल से ही एक साथ रह रहे हैं। भारत की इसकी सांस्कृतिक विरासत को विविध धर्म, जाति और पंथ ने समृद्ध बनाया हुआ है जिसके कारण यहाँ पर एक मिश्रित संस्कृति को सामने रखा है। हालांकि ये बात बहुत ही साफ है कि भारत में हमेशा राजनीतिक एकता की कमी रही है जो की राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक है।

राष्ट्रीय एकता का अर्थ | National Unity Meaning in Hindi

सामान्य भाषा में एकता का साधारण अर्थ होता है मिलजुल कर रहना या कार्य करना। राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया व एक भावना है जो किसी राष्ट्र अथवा देश के लोगों में भाईचारा अथवा राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं अपनत्व का भाव प्रदर्शित करती है। एकता का महत्व मनुष्य को उसी समय पता चलता है जब वो बिलकुल आदिम अवस्था में होता है। राष्ट्रीय एकता का मतलब भी यही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना ही राष्ट्रीय एकता है। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक एवं भावनात्मक निकटता की समानता भी आवश्यक है।

राष्ट्रीय एकता क्यों आवश्यक है | Why National Unity is Necessary

हमारे देश में अलग-अलग धर्म और जाति होने के बावजूद हमारे देश को जो वस्तु प्रगति के रास्ते पर अग्रसित करती है वही राष्ट्रीय एकता कहलाती है। यही कारण है कि हमें भारत में विविधता में एकता के वास्तविक अर्थ को समझना चाहिये जो की हमें एकता के बारे में समझाता है। इसका ये कतई मतलब नहीं है कि अखंडता की प्रकृति यहाँ पर नस्लीय और सांस्कृतिक समानता के कारण होनी चाहिये। बल्कि एकता का मतलब है कि इतने अंतर के बावजूद भी एकात्मता है। इसे ही एकता के नाम से जानते हैं।

भारत में अनेकता के विविध रूप | Multiple Forms of Diversity in India

हमारे भारत जैसे विशाल देश में अनेकता का होना स्वाभाविक ही है क्योंकि धर्म के क्षेत्र में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि विविध धर्म के लोग यहां निवास करते हैं। वहीं एक-एक धर्म में भी अंतर भेद हैं जैसे हिंदू धर्म के अंतर्गत वैष्णव, शैव, शाक्त आदि भेद है। मुसलमान में भी शिया-सुन्नी आदि भेद हैं। देश में सामाजिक दृष्टि से विभिन्न जातियां, उपजातियां, गोत्र आदि विविधता के सूचक हैं। यहाँ सांस्कृतिक दृष्टि से खान पान, वेशभूषा, पूजा-पाठ आदि की भिन्नता में भी अनेकता है। भारत जैसे देश में साहित्यिक दृष्टि से शोभा, भौगोलिक स्थिति, ऋतु परिवर्तन आदि में भी पर्याप्त भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इतनी विविधताओं के होते हुए भी भारत अत्यंत प्राचीन काल से एकता के सूत्र में बंधता आ रहा है, जो की आगे निरंतर चल रहा है।

साम्प्रदायिकता | Communalism in Hindi

राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा तो सांप्रदायिकता की भावना को ही माना जाता है। सांप्रदायिकता एक ऐसी बुराई है जो मानव-मानव में फूट डालती है और यही बुराई, समाज को विभाजित करती है। दुर्भाग्य से सांप्रदायिकता की बीमारी का जितना इलाज किया गया वह उतना ही अधिक बढ़ता गया। स्वार्थी राजनीति वाले नेता संप्रदाय के नाम पर देश की भोली-भाली जनता को परस्पर लड़ा कर अपना ही स्वार्थ पूरा कर रहे हैं। जिससे देश का वातावरण हद से ज्यादा विषैला होता जा रहा है। सांप्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से सभी धर्मों में सेवा, परोपकार, सत्य, प्रेम, समता, नैतिकता, अहिंसा, पवित्रता आदि गुण समान रूप से मिलते हैं। वही जहां भी देश मे लोग द्वेष , घृणा और विरोधी हैं , धर्म नहीं हैं। इसके बारे में लोगों को समझना चाहिए।

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,

हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।”

मध्यकालीन भारतीय इतिहास मे अंग्रेजों ने फूट डालो राज्य करो नीति के अंतर्गत ही भारत विभाजन कराया और एक नये राष्ट्र पाकिस्तान तथा वर्तमान हिंदुस्तान के बीच सदैव के लिए वैमनस्य का बीज बो दिया। राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने के लिए कुछ जरूरी जैसे सांप्रदायिक विद्वेष, स्पर्धा, ईर्ष्या आदि राष्ट्र विरोधी भावनाओं को मन से त्याग कर परस्पर सांप्रदायिक सद्भाव रखना होगा। शाब्दिक तौर पर सांप्रदायिक सद्भाव का अर्थ है कि हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध आदि सभी भारत भूमि को अपनी मातृभूमि मानकर एक साथ और सद्भाव के साथ रहें। यह देश की राष्ट्रीय एकता के लिए अनिवार्य एवं आवश्यक है। देश में सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए हम सभी भारतवासियों को प्रेम से रहना चाहिए। सभी धर्म आत्मा की शांति के लिए विभिन्न उपाय करते हैं। यहाँ सभी धर्म समान हैं कोई छोटा बड़ा नहीं है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च सभी हमारे देश में पूजा के स्थल है। इन सभी स्थानों पर हमारे आत्मा को शांति मिलती है। हमारे लिए स्थापित सभी पूजा स्थल पूज्य और पवित्र हैं।

उपंसहार:-

हमारे देश में राष्ट्रीय एकता काफी जरूरी है वही यहां पर सभी प्रकार के धर्मों में समानता साम्प्रदायिक सदभावना के तौर पर दिखाई देती है। सामान्य भाषा में एकता का साधारण अर्थ होता है मिलजुल कर रहना या कार्य करना। राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया व एक भावना है जो किसी राष्ट्र अथवा देश के लोगों में भाईचारा अथवा राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं अपनत्व का भाव प्रदर्शित करती है। एकता का महत्व मनुष्य को उसी समय पता चलता है जब वो बिलकुल आदिम अवस्था में होता है। हमारा देश में आज विकास के साधन बढ़ रहे हैं, वही भौगोलिक दूरियाँ भी कम हो रही हैं किन्तु आदमी और आदमी के बीच दूरी राजनैतिक, सामाजिक व धार्मिक तौर पर बढ़ती जा रही हैं। सांप्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से सभी धर्मों में सेवा, परोपकार, सत्य, प्रेम, समता, नैतिकता, अहिंसा, पवित्रता आदि गुण समान रूप से मिलते हैं, वही जहां भी देश मे लोग द्वेष, घृणा और विरोध है, धर्म नहीं है। इसके बारे मे लोगों को समझना चाहिए। देश मे हम सभी को मिलकर राष्ट्रीय एकता के लियें प्रयास करना चाहिये। ऐसा करने पर भारत एक सबल राष्ट्र बनेगा।

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