राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ एक क्रांतिकारी कवि और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी कविताओं में देशभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम की भावना प्रकट होती है। उनकी रचनाएं आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। यहाँ उनकी कुछ प्रमुख कविताएँ प्रस्तुत हैं:
1. सरफ़रोशी की तमन्ना
यह कविता स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहुत लोकप्रिय हुई थी और बिस्मिल ने इसे अपने संघर्ष और बलिदान की अभिव्यक्ति के रूप में लिखा था। इसे क्रांतिकारियों का anthem माना जाता है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।
खींच कर लायी है सब को क़त्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।
जब इंकलाब का तूफ़ान उठेगा और हमारे कदमों के आगे
तूफ़ान भी ठहर जाएगा, ऐसे हौसले और जुनून का जज़्बा
अब हमारे दिल में है।
यह कविता क्रांतिकारियों के दिलों में आजादी की आग और आत्म-बलिदान की भावना को दिखाती है। राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने इसे अपने आंदोलन का प्रतीक बनाया और हर भारतीय के दिल में इसे देशभक्ति की भावना के रूप में बसाया।
2. मेरा रंग दे बसंती चोला
यह कविता भी एक प्रसिद्ध रचना है, जो बिस्मिल ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने जुनून और बलिदान की भावना को व्यक्त करने के लिए लिखी थी। इस गीत में मातृभूमि के लिए बलिदान देने का भाव और अपने देश के प्रति प्रेम और समर्पण को प्रकट किया गया है।
मेरा रंग दे बसंती चोला,
मेरा रंग दे बसंती चोला।
माय रँग दे बसंती चोला।
मेरा रंग दे बसंती चोला,
जिसे पहन शहीदों ने है माँ की लाज बचाई।
सर पर खेल के वो बंदा,
महाकाल बन आया।
मेरा रंग दे बसंती चोला
मेरा रंग दे बसंती चोला।
हम बेखौफ परिंदे हैं,
जो अम्बर में उड़ते हैं।
मौत को सीने से लगाकर
जिएं भी हम मरते हैं।
मेरा रंग दे बसंती चोला,
मेरा रंग दे बसंती चोला।
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मर मिटने वालों का बाकी यही निशां होगा।
मेरा रंग दे बसंती चोला,
मेरा रंग दे बसंती चोला।
यह गीत भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता और मातृभूमि के प्रति उनके अनन्य प्रेम का प्रतीक है। गीत में बसंती चोला पहनने की इच्छा व्यक्त की गई है, जो बलिदान और साहस का प्रतीक है।
3. जेल की रात
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ द्वारा रचित “जेल की रात” कविता उनके जीवन के अंतिम दिनों में लिखी गई थी, जब वे जेल में बंद थे। इस कविता में उन्होंने अपने मन के भावों को बड़ी गहराई से व्यक्त किया है। यह कविता उनके बलिदान, देशभक्ति, और आत्मिक शांति की झलक देती है।
आरज़ू अब बेकरारी में बदल जाती है,
साँस थमती है, पर ज़ुबां निकल जाती है।
दीवारों में दबी है खामोशी ऐसी,
कि हर आवाज़ गूँज कर वापस आती है।
सन्नाटा है और दूर कहीं उम्मीद के परे,
हवाओं में गूंजती आवाज़ें फिर लहराती हैं।
पलकों की सिलवटों में ख्वाबों का डेरा,
हर सपना मेरी आँखों में मुस्कुराती है।
हर दिन को जीता हूँ इक नया अक्स लेकर,
मौत से मिलने का जश्न मनाती है।
चुप-चाप इस काल-कोठरी की हर रात,
अब फख्र से अपने हिस्से का गीत सुनाती है।
गुलामी में वो दम कहाँ जो आज़ादों में है,
आज़ादी का जुनून ही सबसे खास बात है।
फांसी के फंदे पर झूलने को जो तैयार है,
उनके कदमों में झुका सारा जहाँ और यह कायनात है।
“जेल की रात” कविता में बिस्मिल ने अपने उस साहसिक और बलिदानी भाव को व्यक्त किया है, जो वे अपने देश के लिए करना चाहते थे। यह कविता उनकी मानसिक स्थिति, उनके दृढ़ संकल्प और देश के प्रति उनके समर्पण को दिखाती है।
4. ‘बिस्मिल’ का प्रण
बिस्मिल का यह प्रण उनके जीवन के उद्देश्य को दर्शाता है। यह कविता उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण सोच और उनके बलिदान का प्रतीक है। यह कविता राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के साहस, उनके दृढ़ निश्चय और बलिदान के संकल्प को दर्शाती है। उनका यह प्रण हमें यह सिखाता है कि मातृभूमि के प्रति निष्ठा और बलिदान ही सच्ची देशभक्ति का परिचायक है।
मैं आज़ादी का दीवाना हूँ,
मुझे हंसते-हंसते मर जाने दो।
मैं देश की खातिर बलिदान हूँ,
मुझे देश पर मिट जाने दो।
बढ़े चलो चाहे हो फांसी का फंदा,
चले चलो सिपाही हम सबके आगे।
प्रण किया है जो ‘बिस्मिल’ ने,
उसे निभाने दो, मुझे निभाने दो।
लहू से रंगा बसंती चोला,
हमें खुद को कुर्बान करने दो।
धरती माँ की लाज बचाने,
मुझे वीरगति पाने दो।
माँ का आँचल मेरी मंज़िल,
प्रण मेरा यही सुहाना है।
जो कसम उठाई है,
उसे पूरा कर जाने दो।
हे मातृभूमि! तुझे प्रणाम, मैं तुम्हारे लिए लड़ूंगा।
तेरी धरती पर हंसते-हंसते जान दूंगा।
मुझे फाँसी का कोई डर नहीं, मातृभूमि की सेवा करूँगा।
तेरी ही गोद में जन्म लिया, तुझ पर ही मरूँगा।
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ की ये कविताएँ देशभक्ति से भरी हैं तथा उनकी आत्मा की आवाज़ को व्यक्त करती हैं। उनका लेखन आज भी स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की याद दिलाता है और नई पीढ़ी को देश के प्रति कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरित करता है।