राजीव दीक्षित जी के बारे में जितना भी व्याख्यान किया जाय वो कम होगा। वह हमारे देश के महान रत्न थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन स्वदेशी का प्रचार और राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया। बचपन से ही उन्हें देश की समस्याओं को जानने की तीव्र इच्छा रहती थी। इसीलिए वह रोज ज्यादा से ज्यादा Newspapers व magazines पढ़ते थे, जिन्हें खरीदने के लिए उनके लगभग 1000 रुपये हर महीने खर्च हो जाते थे।
राजीव दीक्षित जी का जन्म 30 नवम्बर 1967 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के नाह गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री राधेश्याम दीक्षित और माता का नाम श्रीमती मिथिलेश कुमारी था। बचपन से ही राजीव दीक्षित जी का दिमाग बहुत तेज था और नई चीजे जानने की इच्छा उनके मन में हमेशा रहती थी। उनके Teachers भी उनके सवालों से डरते थे कि कब क्या सवाल पूछ बैठे। एक बार उन्होंने अपने अध्यापक से पूछ दिया कि “सर प्लासी की लड़ाई में अंग्रेजों की तरफ से लड़ने वाले कितने सैनिक थे?”
टीचर ने कहा मुझे नहीं मालूम। राजीव जी ने कहा “क्यों नहीं मालूम ?” अध्यापक ने कहा जब मुझे किसी ने नहीं पढ़ाया तो मैं तुम्हें कैसे बताऊँ?
फिरोजाबाद से इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने इलाहाबाद से B. Tech. (Bachelor of Technology) तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से M. Tech. (Master of Technology) की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने कुछ समय भारत के CSIR (Council of Scientific and Industrial Research) तथा फ्रांस के Telecommunication Center में भी काम किया। उसके बाद वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ॰ ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ जुड़ गये।
प्रो० धर्मपाल जो एक इतिहासकार थे, राजीव जी उन्हें अपना गुरु मानते थे। प्रो० धर्मपाल जी ने बहुत सारे प्रश्नों और समस्याओं को सुलझाने में राजीव भाई की मदद की। उन्होंने राजीव जी को बहुत सारे दस्तावेज उपलब्ध करवाये जो England की Library (House of Commons) में रखे हुए थे। जिसमे संपूर्ण वर्णन था कि अंग्रेजों ने कैसे भारत को गुलाम बनाया ? राजीव जी ने उसका गहराई से अध्ययन किया, जिससे यह निष्कर्ष निकला की इतिहास में आज तक जो भी पढ़ाया जा रहा है उसमे बहुत सारी चीजें गलत है। देश के लोगों को सच्चाई से अवगत कराने के लिए राजीव जी शहर-शहर और गाँव-गाँव जाकर व्याख्यान देने लगे और लोगो को जागरूक करने लगे।
राजीव दीक्षित जी ने 20 वर्षों में लगभग 12000 से अधिक महत्वपूर्ण व्याख्यान दिये। भारत में 5000 से अधिक विदेशी कम्पनियों के खिलाफ उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत की। उन्होंने 9 जनवरी 2009 को भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का दायित्व सँभाला। राजीव दीक्षित ने स्वदेशी आन्दोलन तथा आज़ादी बचाओ आन्दोलन की शुरुआत की तथा इनके प्रवक्ता बने। उन्होंने जनवरी 2009 में Bharat Swabhiman Trust की स्थापना की तथा इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सचिव बने।
30 नवम्बर 2010 को दीक्षित को अचानक दिल का दौरा पड़ने के बाद पहले भिलाई के सरकारी अस्पताल ले जाया गया उसके बाद अपोलो बी०एस०आर० अस्पताल में दाखिल कराया गया। उन्हें दिल्ली ले जाने की तैयारी की जा रही थी लेकिन इसी दौरान स्थानीय डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डाक्टरों का कहना था कि उन्होंने ऍलोपैथिक इलाज से लगातार परहेज किया। चिकित्सकों का यह भी कहना था कि दीक्षित होम्योपैथिक दवाओं के लिये अड़े हुए थे। अस्पताल में कुछ दवाएँ और इलाज से वे कुछ समय के लिये बेहतर भी हो गये थे मगर रात में एक बार फिर उनको गम्भीर दौरा पड़ा जो उनके लिये घातक सिद्ध हुआ। राजीव जी कि मृत्यु के बाद उनका शरीर नीला पड़ गया था जिसके बारे में लोगों की अलग-अलग राय हैं, जिससे आज तक उनकी मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है।