एक पुराने जंगल में शेर और शेरनी का एक जोड़ा रहता था। कुछ दिनों के बाद शेरनी ने दो सुन्दर बच्चों को जन्म दिया। एक बार की बात है, शेर और शेरनी दोनों बच्चों छोड़कर शिकार की तलाश में जंगल में कही दूर निकल गये। काफी देर हो जाने के कारण भूख से छोटे बच्चों का गला सूखने लगा। भूख के मारे वह बुरी तरह छटपटा रहे थे। उसी रास्ते से गुजरती हुई एक बकरी को उन बच्चों पर दया आ गई। भूख से तड़पते बच्चे बकरी से देखे नहीं गए और उसने सिंहों के बच्चों को अपना दूध पिला दिया।
दूध पीकर बच्चे ख़ुशी से आपस में खेलने लगे। तभी अचानक शेरों का जोड़ा वापस आया और उनकी नजर बकरी पर पड़ी। जैसे ही दोनों बकरी पर आक्रमण करने के लिए आगे बढे तो बच्चों ने चिल्लाकर बकरी का बचाव किया और कहा कि इसने हमें दूध पिलाकर हमपर बहुत बड़ा उपकार किया है अन्यथा हम लोग भूखों मर गए होते। बच्चों की बातें सुनकर शेर और शेरनी बहुत खुश हुए और उन्होंने बकरी का आभार व्यक्त करते हुए उसे धन्यवाद दिया और कहा कि “हम तुम्हारा ये उपकार कभी नहीं भूलेंगे, जाओ पुरे जंगल में आजाद होकर घूमो और मौज-मस्ती करो।”
बकरी अब पुरे जंगल में निडर होकर घूमती और शेरों के बच्चों के साथ भी खेलती थी। कभी-कभी तो वह शेरों की पीठ पर चढ़कर पेड़ों के पत्ते भी तोड़कर खाती थी। जंगल के अन्य जानवर भी बकरी के साथ अच्छा व्यौहार करने लगे थे। एक बाज कई दिनों से बकरी को देख रहा था, वह बकरी और शेर को एक साथ ख़ुशी से रहते देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित था। अंत में उससे रहा नहीं गया और आखिर एक दिन उसने बकरी से इसका कारण पूंछ ही लिया। बकरी ने बाज से सारा कुछ विस्तारपूर्वक बताया कि पिछले दिनों किस तरह से उसके साथ सारी घटना घटित हुई। तब जाकर बाज को पता चला कि परोपकार का क्या महत्व होता है।
अगले ही दिन बाज उड़ान भर रहा था की उसने देखा कि चूहों के छोटे-छोटे बच्चे एक दलदल में फंसे हुए थे और पूरी कोशिश के बावजूद वह दलदल से नहीं निकल पा रहे थे। तभी बाज के दिमाग में भी बकरी वाली बात याद आयी और उसने सोचा चलो मैं भी इन चूहों पर एक प्रयोग करता हूँ। बाज ने उन सभी चूहों को दलदल से निकलकर सुरक्षित स्थान पर पंहुचा दिया। काफी देर तक भीग जाने के कारण वो सभी ठण्ड से काँप रहे थे। ठण्ड से बचाव के लिए बाज ने उन्हें अपने पँखों के नीचे छुपा लिया। चूहों ने काफी राहत महशूस किया।
कुछ समय बाद जब बाज उड़कर वहां से जाने लगा तो उसे उड़ने में दिक्कत महशूश हुई, बाज की उड़ान पहले जैसे नहीं थी, क्योंकि चूहों के बच्चों ने उसके पंख कुतर डाले थे। बाज तुरंत बकरी के पास गया और उसने अपनी आप बीती बकरी को सुनाई। उसने बकरी से कहा, “तुमने भी परोपकार किया था और मैंने भी उपकार किया है लेकिन हम दोनों को परोपकार का फल अलग-अलग क्यों?”
बकरी ने हंसकर गंभीरता के साथ उत्तर दिया, “उपकार हमेशा उन्हीं पर करो, जो उपकार को समझें।” अर्थात बहादुर लोग (शेर) दूसरों द्वारा किये गए परोपकार को कभी नहीं भूलते हैं, जबकि कायर लोग (चूहे) अक्सर उपकार भूलकर धोका देते हैं।
ठीक उसी प्रकार जैसे पिछले वर्ष कश्मीरियों को सेना ने बाढ़ में डूबने से बचाया था और आज वो ही एहसान फरामोश सेना पर पत्थर फेंक रहे हैं।