ओलिव रिडले कछुआ (Olive Ridley Turtle) समुद्री कछुओं की एक प्रजाति है, जिसे वैज्ञानिक रूप से Lepidochelys olivacea कहा जाता है। यह दुनिया के सबसे छोटे समुद्री कछुओं में से एक है और मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय महासागरों में पाया जाता है। इन कछुओं का नाम उनके जैतून-हरे (ओलिव-ग्रीन) रंग के कारण पड़ा। यह कछुआ अपने सामूहिक नेस्टिंग (अंडे देने) व्यवहार के लिए प्रसिद्ध है, जिसे अरिबाडा (Arribada) कहा जाता है।
इस ब्लॉग में हम ओलिव रिडले कछुए की विशेषताएं, निवास स्थान, जीवन चक्र, संरक्षण स्थिति, महत्व और भारत में इसके संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करेंगे।
ओलिव रिडले कछुए का आकार (Olive Ridley Turtle Size)
- ओलिव रिडले दुनिया के सबसे छोटे समुद्री कछुओं में से एक है।
- लंबाई: औसतन 60-70 सेमी (2-2.5 फीट)।
- वजन: लगभग 35-50 किलोग्राम।
- इनका शरीर चपटा और गोलाकार होता है, जो इन्हें समुद्र में आसानी से तैरने में मदद करता है।
- इनकी पीठ पर 6 से 9 कड़े स्कूट (scutes) होते हैं, जो इन्हें अन्य कछुओं से अलग पहचान देते हैं।
भारत में ओलिव रिडले कछुए कहां पाए जाते हैं? (Where is Olive Ridley Turtles Found in India?)
ओलिव रिडले कछुए मुख्य रूप से प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में पाए जाते हैं। भारत में इनके प्रमुख नेस्टिंग स्थल निम्नलिखित हैं:
(A) ओडिशा (Orissa) – सबसे बड़ा नेस्टिंग स्थल
- गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य (Odisha) – विश्व का सबसे बड़ा नेस्टिंग क्षेत्र।
- रूसीकुल्या तट (Odisha) – जहां हर साल लाखों कछुए आते हैं।
- देवी नदी मुहाना (Odisha) – महत्वपूर्ण प्रजनन स्थल।
(B) अन्य राज्य जहां ये पाए जाते हैं
- आंध्र प्रदेश – कृष्णा और गोदावरी डेल्टा क्षेत्र।
- तमिलनाडु – चेन्नई और वेलंकन्नी समुद्र तट।
- गोवा – मोरजिम, अंजुना और अगोंडा समुद्र तट।
- महाराष्ट्र – रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग तट।
- पश्चिम बंगाल – सुंदरबन क्षेत्र।
ओलिव रिडले कछुए क्यों संकटग्रस्त हैं? (Why Are Olive Ridley Turtles Endangered?)
ओलिव रिडले कछुओं को IUCN (International Union for Conservation of Nature) द्वारा “संकटग्रस्त” (Vulnerable) प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
मुख्य खतरे
- मानव हस्तक्षेप – समुद्री तटों पर शहरीकरण, रोशनी और आवाजाही से इनके नेस्टिंग क्षेत्रों पर असर पड़ता है।
- मछली पकड़ने के जाल – कई कछुए गलती से मछुआरों के जाल में फंस जाते हैं और मारे जाते हैं।
- समुद्री प्रदूषण – प्लास्टिक और तेल रिसाव इनके लिए घातक साबित होता है।
- अवैध शिकार और अंडों की तस्करी – इनके अंडों को भोजन और औषधीय उपयोग के लिए अवैध रूप से निकाला जाता है।
- जलवायु परिवर्तन – समुद्र के बढ़ते तापमान और जल स्तर में वृद्धि से इनके नेस्टिंग क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।
भारत में ओलिव रिडले कछुओं का महत्व (Importance of Olive Ridley Turtles in India)
- समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखते हैं।
- समुद्र में जेलीफ़िश और अन्य समुद्री जीवों की संख्या को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
- इनका नेस्टिंग भारत के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को दर्शाता है।
- ये समुद्री भोजन श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और छोटे समुद्री जीवों के शिकार के रूप में कार्य करते हैं।
भारत में ओलिव रिडले कछुओं को देखने का सबसे अच्छा समय (Best Time to See Olive Ridley Turtles in Orissa)
भारत में ओलिव रिडले कछुए हर साल नवंबर से अप्रैल के बीच अंडे देने के लिए समुद्री तटों पर आते हैं।
- सबसे अच्छा समय: दिसंबर से मार्च।
- स्थान: ओडिशा के गहिरमाथा, रूसीकुल्या और देवी नदी मुहाने के तट।
- विशेष घटना: अरिबाडा (Arribada) – जब हजारों मादा कछुए एक साथ समुद्र तट पर अंडे देने आते हैं।
- स्थानीय पर्यटकों और वैज्ञानिकों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
दुनिया में कितने ओलिव रिडले कछुए बचे हैं? (How Many Olive Ridley Turtles Are Left?)
- वर्तमान में 8,00,000 से 10,00,000 वयस्क ओलिव रिडले कछुए दुनिया में बचे हैं।
- भारत में हर साल लगभग 5-6 लाख कछुए नेस्टिंग के लिए समुद्र तटों पर आते हैं।
- कई क्षेत्रों में इनकी संख्या में गिरावट देखी गई है।
ओलिव रिडले कछुए से जुड़े विशेष तथ्य (Olive Ridley Turtle Special Facts)
✅ ओलिव रिडले कछुए हर साल हजारों किलोमीटर की यात्रा करके अपने जन्मस्थान पर अंडे देने आते हैं।
✅ ये रात के समय अंडे देते हैं ताकि शिकारियों से बच सकें।
✅ मादा कछुआ एक बार में 100-150 अंडे देती है।
✅ केवल 1% से भी कम नवजात कछुए वयस्क बनने तक जीवित रह पाते हैं।
✅ समुद्र में ये 35-50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकते हैं।
निष्कर्ष
ओलिव रिडले कछुए न केवल समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बल्कि भारत की जैव विविधता के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण ये संकट में हैं। हमें इनके संरक्षण के लिए समुद्री प्रदूषण को कम करना होगा और अवैध शिकार को रोकना होगा।
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