नेल्सन मंडेला, जिन्हें “दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपिता” कहा जाता है, एक महान नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता और प्रेरक व्यक्तित्व थे। उन्होंने नस्लीय भेदभाव (अपार्थेड) के खिलाफ संघर्ष करते हुए दक्षिण अफ्रीका को एक लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण राष्ट्र बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके संघर्ष और बलिदान ने उन्हें पूरे विश्व में मानवता, समानता और शांति का प्रतीक बना दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका के म्वेजो गांव में हुआ। उनका पूरा नाम “नेल्सन रोलीलाल्हला मंडेला” था। उनके पिता गदला हेनरी म्फाकेनिस्वा थे, जो थेमबू जनजाति के मुखिया थे। “रोलीलाल्हला” का अर्थ है “शरारती लड़का”।
मंडेला का पालन-पोषण पारंपरिक थेमबू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय मिशनरी स्कूल में हुई, जहां उनके शिक्षक ने उन्हें “नेल्सन” नाम दिया। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने फोर्ट हरे यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया। यहीं पर उनका सामाजिक और राजनीतिक जीवन की ओर रुझान हुआ। बाद में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटरस्रैंड से कानून की पढ़ाई की।
नस्लभेद और अपार्थेड के खिलाफ संघर्ष
दक्षिण अफ्रीका में 1948 में “अपार्थेड” नामक नस्लीय भेदभाव की नीति लागू की गई। इस नीति के तहत अश्वेतों को समाज के हर क्षेत्र में भेदभाव और अत्याचार सहना पड़ा। नेल्सन मंडेला ने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) के साथ जुड़कर इस अन्यायपूर्ण नीति के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
1952 में उन्होंने “Defiance Campaign” का नेतृत्व किया, जिसमें हजारों लोगों ने नस्लभेद कानूनों का शांतिपूर्ण उल्लंघन किया। इसके बाद 1955 में “फ्रीडम चार्टर” तैयार किया गया, जिसमें सभी के लिए समान अधिकारों की मांग की गई।
कैद और संघर्ष का दौर
नेल्सन मंडेला को 1962 में गिरफ्तार कर लिया गया और देशद्रोह तथा हिंसा भड़काने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्होंने 27 वर्ष जेल में बिताए, जिनमें से अधिकांश समय रोबेन द्वीप पर बीता।
जेल में रहते हुए भी मंडेला ने अपनी लड़ाई जारी रखी। उन्होंने अपने साथियों के साथ आत्मनिर्भरता और शिक्षा को बढ़ावा दिया। जेल में ही उन्होंने अपनी आत्मकथा “लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम” लिखी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और आंदोलनकारियों के दबाव के चलते, उन्हें 11 फरवरी 1990 को रिहा कर दिया गया।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति के रूप में योगदान
1994 में नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। यह दक्षिण अफ्रीका के इतिहास में एक नई शुरुआत का प्रतीक था। उनके कार्यकाल में उन्होंने नस्लीय भेदभाव समाप्त करने, राष्ट्रीय एकता और सुलह की दिशा में काम किया।
मंडेला ने “सत्य और सुलह आयोग” (Truth and Reconciliation Commission) की स्थापना की, ताकि अपार्थेड के दौरान हुए अपराधों का समाधान निकाला जा सके और समाज में शांति स्थापित हो। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सुधारों के लिए कई योजनाएं लागू कीं।
पुरस्कार और सम्मान
नेल्सन मंडेला को उनके योगदान के लिए विश्वभर में सम्मानित किया गया। 1993 में उन्हें “नोबेल शांति पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें भारत का “भारत रत्न,” अमेरिका का “प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम,” और अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले।
निजी जीवन
नेल्सन मंडेला का व्यक्तिगत जीवन काफी जटिल था। उन्होंने तीन बार विवाह किया। उनकी पहली पत्नी एवलिन मेस से उनके चार बच्चे थे। बाद में उनका तलाक हो गया। उनकी दूसरी पत्नी विनी मंडेला ने राजनीतिक संघर्ष में उनका साथ दिया, लेकिन 1996 में उनका विवाह समाप्त हो गया। उनकी तीसरी पत्नी ग्राका माचेल थीं, जो मोज़ाम्बिक के पूर्व राष्ट्रपति की विधवा थीं।
मृत्यु और विरासत
नेल्सन मंडेला का निधन 5 दिसंबर 2013 को 95 वर्ष की आयु में जोहान्सबर्ग में हुआ। उनके निधन पर पूरी दुनिया ने शोक व्यक्त किया।
उनकी विरासत आज भी जीवित है। वे एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्होंने अपनी दृढ़ता और नेतृत्व से अन्याय और असमानता के खिलाफ दुनिया को प्रेरित किया। उनका जीवन यह संदेश देता है कि कठिन परिस्थितियों में भी शांति, समानता और मानवता के लिए संघर्ष जारी रखना चाहिए।
निष्कर्ष
नेल्सन मंडेला का जीवन साहस, दृढ़ संकल्प और सेवा का प्रतीक है। उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू को दूसरों के लिए प्रेरणा बनाया। उनका संघर्ष हमें यह सिखाता है कि हर व्यक्ति अपने प्रयासों से समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। नेल्सन मंडेला हमेशा मानवता के रक्षक और एक महान नेता के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेंगे।