Man Changa To Kathoti Mein Ganga Sant Ravidas Story in Hindi

संत रविदास और गंगा जी की कथा | Man Changa to Kathoti Mein Ganga

संत रविदास भारतीय भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख संत थे। उनका जन्म 15वीं शताब्दी में एक चर्मकार परिवार में हुआ था, लेकिन वे जन्म से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। उनके हृदय में भक्ति का सागर लहरा रहा था, और वे सदैव ईश्वर के ध्यान में लीन रहते थे। संत रविदास जी ने समाज में व्याप्त भेदभाव, जातिवाद और ऊँच-नीच की भावना को समाप्त करने के लिए अपने उपदेशों और भजनों के माध्यम से लोगों को सच्ची भक्ति और प्रेम का मार्ग दिखाया।

उनके जीवन से जुड़ी अनेक प्रेरणादायक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा गंगा जी से संबंधित है। इस कथा से यह सिद्ध होता है कि सच्ची भक्ति और निःस्वार्थ प्रेम के आगे स्वयं ईश्वर और प्रकृति भी झुक जाती हैं।

संत रविदास जी की विनम्रता और भक्ति

संत रविदास जी जीवनभर अपने हाथों से जूते बनाकर आजीविका चलाते थे, लेकिन उनका हृदय सदैव ईश्वर के चरणों में समर्पित रहता था। वे अपने कार्यस्थल को भी पूजा स्थल के रूप में देखते थे और हमेशा भजन गाते रहते थे। उनके मधुर शब्दों और भक्ति से प्रभावित होकर कई लोग उनके पास आकर सत्संग किया करते थे।

एक बार गाँव के कुछ ब्राह्मण गंगा स्नान के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे। गंगा जी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और मोक्षदायिनी माना जाता है, और लोगों की यह धारणा थी कि गंगा स्नान से सभी पाप धुल जाते हैं। जब संत रविदास जी ने उन ब्राह्मणों को गंगा स्नान के लिए जाते हुए देखा, तो उन्होंने बड़े ही विनम्र भाव से कहा,

आप सभी माँ गंगा के पवित्र जल में स्नान करने जा रहे हैं। कृपया मेरे लिए भी थोड़ा गंगाजल ले आइए, ताकि मैं भी इस जल से स्नान कर सकूँ और पवित्र हो सकूँ।”

ब्राह्मणों ने संत रविदास जी की इस विनम्रता पर ध्यान नहीं दिया और हँसते हुए व्यंग्यपूर्वक बोले,

गंगा जी का जल लाने से कोई लाभ नहीं होता। असली पुण्य तो गंगा जी में स्नान करने से ही प्राप्त होता है। अगर तुम सच में मोक्ष प्राप्त करना चाहते हो, तो स्वयं गंगा जी जाकर स्नान करो।”

यह कहकर वे सभी आगे बढ़ गए। संत रविदास जी मुस्कराए और मन ही मन ईश्वर की लीला को देखने के लिए तैयार हो गए। वे जानते थे कि ईश्वर भक्त के मन की गहराइयों को समझते हैं और सच्चे प्रेम को कभी अस्वीकार नहीं करते।

संत रविदास जी की भक्ति और गंगा जी का प्रकट होना

संत रविदास जी ने ब्राह्मणों के व्यंग्य का उत्तर नहीं दिया, बल्कि अपने कार्यस्थल पर लौटकर भगवान की भक्ति में लीन हो गए। वे सदैव की तरह जूते बनाते हुए भजन गा रहे थे और मन ही मन ईश्वर को स्मरण कर रहे थे।

उन्होंने श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रार्थना की,

हे माँ गंगा! यदि मेरी भक्ति सच्ची है, यदि मैं निष्कलंक और निर्दोष हूँ, और यदि ईश्वर मेरे हृदय में वास करते हैं, तो कृपया स्वयं यहाँ प्रकट होकर मुझे पावन कर दीजिए।”

उनकी इस सच्ची पुकार से स्वयं गंगा माता प्रसन्न हो गईं। अचानक वहाँ एक अद्भुत चमत्कार हुआ। संत रविदास जी के कार्यस्थल पर ही धरती फटी और वहाँ से गंगा जी की एक पवित्र जलधारा प्रकट हो गई। वह जल इतना निर्मल और शीतल था कि उसके दर्शन मात्र से लोगों को दिव्यता का अनुभव होने लगा।

संत रविदास जी ने श्रद्धा से उस जल में स्नान किया और भक्ति में लीन हो गए। उनके चेहरे पर अपार आनंद और शांति की आभा फैल गई। यह देख वहाँ उपस्थित भक्तों की आँखों में श्रद्धा के आँसू आ गए। यह समाचार जल्द ही पूरे गाँव में फैल गया और लोग इस चमत्कार को देखने के लिए वहाँ आने लगे।

ब्राह्मणों की श्रद्धा और पश्चाताप

जब ब्राह्मण गंगा स्नान करके लौटे, तो उन्होंने देखा कि संत रविदास जी के चरणों में गंगा जी की पवित्र धारा बह रही थी। यह दृश्य देखकर वे चकित रह गए और उनकी आँखें आश्चर्य से फैल गईं।

वे समझ गए कि सच्ची भक्ति किसी जाति या सामाजिक स्थिति की मोहताज नहीं होती। भक्ति और प्रेम के बल पर ईश्वर स्वयं भक्त के पास आ जाते हैं। वे संत रविदास जी के चरणों में गिर गए और विनम्रता से क्षमा माँगते हुए बोले,

हमने आपको आपकी जाति और पेशे के आधार पर नीचा समझा, लेकिन आज हमें ज्ञान हो गया कि आप वास्तव में एक महान संत हैं। गंगा जी का आपके चरणों में प्रकट होना यह सिद्ध करता है कि भक्ति के लिए जात-पात, ऊँच-नीच का कोई बंधन नहीं होता, बल्कि केवल प्रेम और सच्ची श्रद्धा ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग है।”

संत रविदास जी ने उन्हें प्रेमपूर्वक उठाया और मुस्कराते हुए कहा,

ईश्वर को पाने के लिए बाहरी दिखावे, जाति या समाज की मान्यता की आवश्यकता नहीं होती। केवल मन की पवित्रता और प्रेम ही हमें उनसे जोड़ सकता है।”

इसके बाद वे सभी ब्राह्मण उनके सच्चे भक्त बन गए और उनके उपदेशों का पालन करने लगे।

कथा से मिलने वाली शिक्षाएँ

यह कथा हमें कई गहरी शिक्षाएँ देती है-

  1. सच्ची भक्ति में अपार शक्ति होती है – यदि भक्ति सच्चे मन से की जाए, तो ईश्वर स्वयं अपने भक्त के पास आ सकते हैं।
  2. जाति और सामाजिक भेदभाव भक्ति में बाधक नहीं होते – संत रविदास जी ने यह सिद्ध कर दिया कि ईश्वर किसी जाति या जन्म के आधार पर नहीं, बल्कि भक्ति के आधार पर भक्त को स्वीकार करते हैं।
  3. बाहरी आडंबरों से अधिक महत्त्व मन की पवित्रता का है – तीर्थ यात्रा या बाहरी पूजा-पाठ से अधिक महत्त्व मन की सच्ची श्रद्धा का होता है।
  4. ईश्वर सभी के लिए समान हैं – वे किसी को ऊँच-नीच के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी भक्ति और निष्ठा के आधार पर अपनाते हैं।

निष्कर्ष

संत रविदास जी की यह कथा हमें यह संदेश देती है कि भक्ति के मार्ग में कोई भी सामाजिक बंधन नहीं होता। ईश्वर केवल प्रेम और निष्ठा को देखते हैं, न कि किसी की जाति या पेशे को। इस कथा के माध्यम से संत रविदास जी ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे भक्त के लिए ईश्वर स्वयं प्रकट होते हैं।

आज भी यह कथा हमें सच्चे प्रेम, समर्पण और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाती है और हमें यह सिखाती है कि ईश्वर को पाने के लिए केवल सच्चे हृदय की आवश्यकता होती है, न कि बाहरी आडंबरों की।

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