हिंदी साहित्य की अगर बात होती है तो जयशंकर प्रसाद का नाम शीर्ष साहित्यकारों में लिया जाता है। इनकी गिनती प्रमुख चार छायावादी कवियों में की जाती है जिसमें जयशंकर प्रसाद , सुमित्रानंदन पंत , सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा के नाम आते हैं। आपने ऐसे कई नाट्य व साहित्यकार को देखा होगा जो अपने क्षेत्र में अच्छा काम करते हैं। ऐसे कई लेखक भी है जो उपन्यास, गद्यांश लिखते हैं। हम आपको ऐसे ही एक लेखक के बारे में बता रहे हैं जो अपने जीवन में किये गये कार्यो की वजह से प्रसिद्ध हैं। आपको इस लेख में जयशंकर प्रसाद के बारे में बता रहे हैं जो आपके लिए प्रेरणा स्रोत बन सकते हैं। अतः आप इस लेख को अंत तक पढ़ें ताकि आपको इसके बारे में पूरी जानकारी मिल सके।
जय शंकर प्रसाद का जीवन परिचय
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 ई० को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता बाबू देवीप्रसाद का अपना तंबाकू का पैतृक व्यवसाय था। इस महान कवि जयशंकर प्रसाद की बात करें तो यह हिन्दी भाषा के कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार इत्यादि थे, यानी इन सब के लिए विख्यात थे। वे हिन्दी के उस छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक कहे जाते थे। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिससे उनके द्वारा बोली जाने वाली खड़ी बोली के काव्य में न केवल कामायनी, जो की काफी प्रसिद्व है की धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जय शंकर के जीवन के कई सूक्ष्म और व्यापक आयामों के उनके उस चित्रण की शक्ति भी इसी के रूप से संचित हुई। उनके इस कार्य घटना के बाद उनकी यह कामयाबी दूर-दूर तक पहुँचकर काव्य प्रेरक के रूप में भी काफी प्रसिद्ध हुई। हिंदी साहित्य में इनका इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है। वे उस समय के युग के जाने माने प्रवर्तक लेखक थे, जिन्होंने अपने जीवन में एक ही साथ कई तरह की रचनाएं की जिसमें “कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास” इत्यादि शामिल हैं।
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई कृतियों की पहचान
अपने समय में मशहूर कवि के जीवन में उनके द्वारा लिखी गई कृतियों की कुछ विशेषताएं हैं –
- भावात्मक शैली – जयशंकर प्रसाद जी द्वारा की गई रचनाएँ उनके नाटक से काव्य लेखन की ओर काफी उन्मुख हुई हैं। जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित शैली में भावनात्मक झलक भी देखने को मिलती है।
- चित्रात्मक शैली – जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखे गये ग्रंथों व काव्यों में कई प्रकार के चित्र भी देखने को मिलते है जिस वजह से हम कह सकते हैं उनके द्वारा लिखित कृतियों में चित्त्रामक शैली भी मिलती है।
- अलंकारिक शैली – जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित कृतियों में हृदय की प्रधानता भी देखने को मिलती है जिस वजह से उनके लेख में अलंकारिक शैली देखने को मिलती है।
- संवाद शैली – उनके द्वारा लिखी गये ग्रंथों में संवाद शैली का भी वर्णन मिलता है।
जीवन का संक्षिप्त परिचय
पुरा नाम | जयशंकर प्रसाद |
जन्म | 30 जनवरी 1889 ई०, वाराणसी |
मृत्यु | 15 नवम्बर 1937 ई० |
पत्नी का नाम | कमला देवी |
पिता का नामू | बाबु प्रसाद |
माता का नाम | देवकी प्रसाद |
जय शंकर प्रसाद का काव्य संग्रह
जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचे गए कुछ काव्य ग्रंथ
- कामायनी / जयशंकर प्रसाद (महाकाव्य)
- आँसू / जयशंकर प्रसाद
- झरना / जयशंकर प्रसाद
- कानन-कुसुम / जयशंकर प्रसाद
- लहर / जयशंकर प्रसाद
- चित्राधार / जयशंकर प्रसाद
- आह ! वेदना मिली विदाई / जयशंकर प्रसाद
- बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद
- दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद
- प्रयाणगीत / जयशंकर प्रसाद
- तुम कनक किरन / जयशंकर प्रसाद
- भारत महिमा / जयशंकर प्रसाद
- अरुण यह मधुमय देश हमारा / जयशंकर प्रसाद
- आत्मकथ्य / जयशंकर प्रसाद
- सब जीवन बीता जाता है / जयशंकर प्रसाद
- हिमाद्रि तुंग श्रृंग से / जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली
जयशंकर प्रसाद की जीवन शैली की बात करे तो इन्होने अपनी काव्य रचना का प्रारंभ प्राचीन ब्रजभाषा से किया था एवं उसके बाद धीरे-धीरे उन्होने खड़ी बोली को अपनाते हुए, अपनी रचनाओं को अलंकरण किया था। इनकी कहावतों में कहीं-कहीं संस्कृत भाषा का भी मिश्रण मिलता है। इनकी कविताओं में विदेशी भाषा व शब्दों का मिश्रण बहुत कम मिलता है। इनके द्वारा लिखी गई कथाएं व काव्य काफी सरल भाषा में लिखे गये हैं। जयशंकर प्रसाद अपने कर्म में दान और धर्म में अधिक विश्वास रखते थे। आपको बता दें कि इनके पिताजी भी मन से बहुत ही उदार, दानी तथा साहित्य प्रेमी व्यक्तित्व थे, कहते है पिता के गुण पुत्र में आ ही जाते हैं, वैसे ही उनके पिता के गुण भी इनमे आ गये थे। जयशंकर प्रसाद ने अपने पिता की तरह ही उनके चरण पदों पर चलते-चलते ही साहित्य का रास्ता चुना और उन्होंने अपने जीवन में उनके पिता की तरह ही नाम कमाया।
हिंदी साहित्य में रूचि की शुरुआत
जयशंकर प्रसाद शुरू से ही प्रतिभा के धनी थे और उन्होने अपने जीवन के 9वे साल में ही लेखन का कार्य शुरू कर दिया था। आपको बताते चलें की उन्होंने अपने गुरु “रसमय सिद्ध” को “कलाधर” नाम की रचना करके दिखाया था। उक्त रचनाओं का निर्माण जयशंकर द्वारा किया गया था जो की वे अंग्रेजो के खिलाफ लिखी थी, इन रचनाओं मे अंग्रेजी शासन की पूर्ण रूप से निंदा की गई है। जयशंकर द्वारा लिखी गई कथाओं व कहानियों में उन्होंने अंग्रेजों को ललकारा था। जयशंकर काफी प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं, जिनको आज भी हिन्दी साहित्य में याद किया जाता है। जयशंकर द्वारा की गई रचनाओं मे नारी का सम्मान भी किया गया है। उन्होंने नारी का स्थान सबसे सर्वोच्च बताया है।
इस लेख में बताई गई जानकारी पूर्ण रूप से इंटरनेट से ली गई है। यह जानकारी पर विश्वास किया जा सकता है परन्तु इस पर विचार करने से पहले अपने स्तर पर रिसर्च जरूर कर लेवे।
निष्कर्ष:-
इस लेख में आपको जयशंकर प्रसाद की जीवनी के बारे में बताया गया है। इस महान कवि जयशंकर प्रसाद की बात करें तो इन्होने हिन्दी भाषा में कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार के रूप में अपना योगदान दिया, यानी इन सबके लिए विख्यात थे। उनको हिन्दी के उन छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक कहा जाता था। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से इस छायावाद की स्थापना की। उम्मीद करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा और यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी ऐसी आशा करते हैं।