An Overview of Discovery of India in Hindi

भारत की खोज (The Discovery of India) पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1942-46 के बीच लिखी गई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। यह न केवल भारतीय इतिहास का विवरण देती है बल्कि नेहरू की भारतीय सभ्यता, संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति गहरी समझ और विचारों को भी प्रस्तुत करती है।

इस पुस्तक का लेखन उस समय हुआ था जब नेहरू ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने राजनीतिक क्रियाकलापों के कारण जेल में थे। 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार किया गया था और अहमदनगर किले में नजरबंद रखा गया। यह पुस्तक, जो कि जेल में लिखी गई थी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मूलभूत पहलुओं के साथ-साथ भारतीय इतिहास, दर्शन, कला, संस्कृति और सभ्यता की खोज का एक दस्तावेज़ है।

पृष्ठभूमि: भारत की खोज का उद्देश्य

पंडित नेहरू ने इस पुस्तक को भारतीय इतिहास, समाज और संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा। इस पुस्तक का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें भारतीय सभ्यता की संपूर्ण यात्रा को दर्शाया गया है – कैसे वैदिक काल से लेकर आधुनिक समय तक भारत ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। नेहरू ने इस पुस्तक के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की कि भारत क्या है और भारतीय होने का क्या मतलब है।

1. प्रारंभिक भारत और सभ्यता का विकास

पुस्तक की शुरुआत नेहरू भारत के प्रारंभिक काल से करते हैं, जहाँ वे भारतीय उपमहाद्वीप के प्राकृतिक सौंदर्य, उसकी भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक विविधता की बात करते हैं। नेहरू सिंधु घाटी सभ्यता का विशेष उल्लेख करते हैं, जो भारत की पहली प्रमुख सभ्यता मानी जाती है। वे यह बताते हैं कि किस तरह सिंधु घाटी की सभ्यता ने प्राचीन भारतीय जीवन में कृषि, शहरीकरण, व्यापार और संस्कृति का विकास किया।

इसके बाद, वैदिक काल का वर्णन आता है, जो भारतीय धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं का प्रारंभिक स्रोत माना जाता है। इस काल में वेदों की रचना हुई, और यह वह समय था जब आर्य सभ्यता का विकास हुआ। नेहरू वैदिक सभ्यता को भारतीय संस्कृति का प्रमुख स्तंभ मानते हैं और बताते हैं कि कैसे यह काल भारतीय सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक मान्यताओं और दार्शनिक विचारों का आधार बना।

2. धार्मिक एवं दार्शनिक विचारों का विकास

‘भारत की खोज’ में नेहरू ने बौद्ध धर्म, जैन धर्म और अन्य धार्मिक आंदोलनों का विस्तार से वर्णन किया है। नेहरू बताते हैं कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने भारतीय समाज में गहरे नैतिक और धार्मिक प्रभाव डाले। बुद्ध के अहिंसा और करुणा के संदेश ने भारतीय समाज को नई दिशा दी और इसे अधिक सहिष्णु और व्यापक दृष्टिकोण वाला बनाया।

इसके अलावा, नेहरू ने उपनिषद, महाभारत, भगवद गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का उल्लेख भी किया है। वे यह बताते हैं कि इन ग्रंथों ने भारत के दार्शनिक और धार्मिक विचारों को कैसे आकार दिया। भगवद गीता को नेहरू विशेष महत्व देते हैं और उसे भारतीय जीवनदर्शन का महान ग्रंथ मानते हैं।

3. विदेशी आक्रमण और सांस्कृतिक संपर्क

नेहरू विदेशी आक्रमणों को भारतीय संस्कृति पर सकारात्मक प्रभाव के रूप में भी देखते हैं। वे ग्रीक, शक, कुषाण और हूणों जैसे विदेशी आक्रमणकारियों का वर्णन करते हैं, जिनसे भारत को न केवल चुनौतियाँ मिलीं, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान का अवसर भी मिला।

मौर्य और गुप्त काल को नेहरू भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल मानते हैं, जब भारत में कला, विज्ञान, दर्शन और साहित्य का अभूतपूर्व विकास हुआ। मौर्य सम्राट अशोक का उल्लेख करते हुए नेहरू बताते हैं कि कैसे अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना कर उसे सम्पूर्ण भारत में फैलाया और समाज में शांति और सहिष्णुता का संदेश दिया।

4. मध्यकालीन भारत

मध्यकालीन भारत के इतिहास में नेहरू ने दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य का विशेष उल्लेख किया है। उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि कैसे इन शासकों ने भारतीय समाज में नए धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विचारों का संचार किया।

मुगल सम्राट अकबर को नेहरू ने विशेष रूप से सराहा, क्योंकि उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की नीति अपनाई। अकबर का दीन-ए-इलाही धर्म और उनका अन्य धर्मों के प्रति उदार दृष्टिकोण भारतीय समाज में विविधता और समरसता का प्रतीक बन गया।

5. आधुनिक भारत की शुरुआत

नेहरू आधुनिक भारत के इतिहास को औपनिवेशिक भारत से जोड़ते हैं। वे ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन और उसके बाद ब्रिटिश शासन का वर्णन करते हैं, जिसने भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति को पूरी तरह बदल कर रख दिया।

ब्रिटिश शासन ने भारत के पारंपरिक उद्योगों और सामाजिक ढांचे को क्षति पहुंचाई, परंतु इसने नए विचारों और शिक्षा के माध्यम से आधुनिकता की राह भी खोली। नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती नेताओं जैसे राजा राममोहन राय, दादाभाई नौरोजी और बाल गंगाधर तिलक का उल्लेख करते हैं, जिन्होंने भारतीय समाज में जागरूकता और स्वतंत्रता की भावना का संचार किया।

6. स्वतंत्रता संग्राम और महात्मा गांधी का प्रभाव

नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक महात्मा गांधी का विशेष उल्लेख करते हैं। उन्होंने गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन और सत्याग्रह को भारतीय समाज में एक नई ऊर्जा का संचारक बताया। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में एक व्यापक जनांदोलन खड़ा हुआ जिसने स्वतंत्रता संग्राम को एक नया रूप दिया।

नेहरू बताते हैं कि किस तरह गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की नींव हिला दी और अंततः भारत को स्वतंत्रता की ओर ले गया।

7. भारत का पुनर्निर्माण और आत्मा की खोज

‘भारत की खोज’ का अंत नेहरू ने स्वतंत्रता के विचार और उसके बाद भारत के पुनर्निर्माण के साथ किया है। नेहरू का मानना था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण की एक प्रक्रिया भी है।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि स्वतंत्रता के बाद भारत को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना होगा और उसके पास अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आत्मा की खोज करने का एक अवसर भी होगा। नेहरू के अनुसार, भारत की आत्मा उसकी विविधता में निहित है, और वह अपने प्राचीन मूल्यों के साथ आधुनिकता को अपनाकर ही अपनी सच्ची पहचान को बनाए रख सकता है।

निष्कर्ष

भारत की खोज केवल इतिहास की पुस्तक नहीं है, बल्कि यह एक दर्शन और विचारधारा का संकलन है जो नेहरू के भारत के प्रति प्रेम और उसकी गहरी समझ को दर्शाता है। यह पुस्तक पाठकों को भारतीय सभ्यता की समृद्ध परंपराओं, संघर्षों और विकास की यात्रा पर ले जाती है।

नेहरू ने इस पुस्तक के माध्यम से यह संदेश दिया कि भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत संस्कृति और विचारधारा है।

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