आपने अपने जीवन मे कई गायकों व कवियों के बारे मे सुना व देखा होगा। लेकिन क्या कभी किसी ऐसे कवि को देखा या सुना है जो अपने शब्द रूपी बाणों से लोगों का ह्रदय परिवर्तन कर दे। ऐसे ही एक कवि के बारे में जानकारी देंगे। वह कवि जिन्हें हम आज भी याद करते हैं और उसका नाम है ‘‘सूरदास’’। आप इस लेख को अंत तक पढे ताकि आपको सूरदासजी के विषय में पूरी जानकारी मिल सके।
सुरदास का जीवन परिचय
सूरदास के जन्म की बात करें तो इनका जन्म मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित रुनकता नामक गांव में 1478 ई० में हुआ था। इनके जन्म स्थान पर कुछ इतिहासकारों के विचारों की बात करें तो कुछ का यह भी मानना है कि उनका जन्म दिल्ली शहर के पास स्थित सीही नामक एक स्थान पर एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था, इस बात में कितनी सत्यता है उस पर इतिहासकार अभी तक रिसर्च कर रहे हैं। अपने जन्मस्थान से कुछ समय बाद ही वे मथुरा के बीच स्थित गऊघाट नामक स्थान पर आकर रहने लगे थे। सूरदास के पिता का नाम रामदास है जो की स्वयं भी एक गायक थे। उनके पिता के जन्मस्थान के विषय में इतिहासकारों में अभी भी मतभेद है। इतिहासकारों का मानना है कि सूरदास अपने प्रारम्भिक समय में आगरा के समीप गऊघाट पर रहने लगे थे एवं उसी स्थान पर उनकी मुलाकात श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए थे। सन् 1584 ईस्वी में सूरदास जी की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में हुई थी।
बिन्दू | जानकारी |
नाम (Name) | सूरदास |
जन्म (Birth) | 1478 ईस्वी |
मृत्यु (Death) | 1580 ईस्वी |
जन्म स्थान (Birth Place) | रुनकता |
कार्यक्षेत्र (Profession) | कवि |
रचनायें (Poetry) | सूरसागर, सूरसारावली,साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो |
पिता का नाम (Father Name) | रामदास सारस्वत |
गुरु (Teacher) | बल्लभाचार्य |
पत्नी का नाम(Wife Name) | आजीवन अविवाहित |
भाषा(Language) | ब्रजभाषा |
सूरदास जी अंधे थे?
वैसे तो इस बात के बारे में बताना मुश्किल है की सूरदास जी जन्म से अंधे थे या नहीं! क्योंकि इस बात के कोई प्रमाणिक सबूत नहीं मिलते हैं, परन्तु कुछ किवदंतियों की मानें तो यह एक पुरानी कहानी है जिसका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं है। अपने जीवन काल में सूरदास जी ने श्री कृष्ण बाल मनोवृत्तियों और उनका मानव स्वभाव का जैसा वर्णन अपने जीवित ग्रंथों में किया है, वही आज वास्तविक में पढ़ा व सुना जाता है। आप लोग भी इस बात को मानते ही होंगे की कोई भी व्यक्ति जन्म से अंधा तो नहीं होता है वह उसके बाद कुछ समस्याओं के तले ही अंधा होता है, वैसे ही सूरदास जी जन्म के बाद ही अंधे हुए थे। इस संदर्भ में हिन्दी साहित्य के ज्ञाता श्यामसुन्दर दास ने क्या शानदार बात लिखी है कि “सूरदास जी जन्म से वास्तव में अंधे नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार और रूप-रंग आदि का जो वर्णन महाकवि सूरदास ने किया वह कोई जन्मान्ध व्यक्ति नहीं कर सकता है।”
सूरदास की रचनाएं
वैसे तो ऐसा माना जाता है कि भारत के कई शानदार कवियों में से एक सूरदास जी ने हिन्दी काव्य में लगभग “सवा लाख पदों” की रचना की है जो कि काफी ज्यादा हैं। और इतना ही नही सूरदास जी ने अपने जीवनकाल मे पांच ग्रंथों की भी रचना की है जिनमे ‘‘सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो’’ इत्यादि प्रमुख हैं। सूरदासजी शुरू से ही कृष्ण भक्त थे जिसके साथ उनकी अपनी कृति सूर सागर काफी प्रसिद्ध है। इस कृति मे लगभग 100000 गीतों को लिखा गया है जिसमे से 8000 ही वर्तमान मे मौजूद हैं। सूरदास जी की माने तो ‘‘कृष्ण भक्ति से ही मनुष्य जीवन को सद्गति प्राप्त हो सकती है’’ और कही न कही यह सत्य भी है।
सूरदास जी ने अपने जीवन मे ऐसे ही कई प्रकार की कविताओं का व्याख्यान किया है जिसमे भगवान कृष्ण की भक्ति पर बेहद ही खूबसूरती से उनकी लीलाओं का प्रमाण मिलता है। सूरदास जी ने अपनी कृति मे कुल 3 रसों को अपनाया है जिनमे ‘‘काव्य में श्रृंगार, शांत और वात्सल्य रस’’ प्रमुख है। उनके द्वारा लिखे गये ग्रंथ आज भी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में मिलते हैं जिनकी संख्या तकरीबन 25 हो सकती है।
सूरदास की काव्यगत विशेषताएँ
सूरदास जी ने अपने जीवन में कई प्रकार की रचनाएं की है जिनमें से कुछ ऐसी रही हैं, जिसकी वजह से ही उन्हें ख्याति मिली और इतना ही नहीं उनकी कविताओं को आज भी पढ़ा जाता है।
सूरदास जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से यह भी बताया है की मनुष्य को भगवान श्रीकृष्ण का अनुग्रह करना चाहिए, इससे मनुष्य को सदबृद्वि मिलती है। वही उन्होने अटल भक्ति कर्मभेद को जातिभेद, ज्ञान, योग से भी श्रेष्ठ बताया है। सूरदास जी ने अपने जीवन मे वात्सल्य, श्रृंगार और शान्त रसों को मुख्य रूप से अपनाया है और लोगों को भी ऐसे ही रस अपनाने की सलाह दी है। सूरदास जी ने अपनी रचनाओं मे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है जो की कृष्ण वास्तविकता की प्रामाणिकता पर प्रकाश डालते है। सूरदास जी ने बालकों की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप इत्यादि का भी काफी अच्छा चित्रण किया है।
सूरदास के गुरु
कृष्ण भक्ति के लिए सूरदास ने अपने परिवार को छोड दिया था जिसके पश्चात वे दीनता के पद गाया करते थे। अगर सूरदास जी के गुरु की बात करे तो श्री वल्लभाचार्य को सूरदास का गुरू माना जाता है, ऐसे प्रमाण मिलते है। उनके शिष्य बनने के बाद वे कृष्ण भगवान का स्मरण करके उनकी लीलाओं का वर्णन भी करने लगे। साथ ही वे अपने गुरु आचार्य वल्लभाचार्य के साथ मथुरा के गऊघाट चले गये और वहाँ पर वे श्रीनाथ के मंदिर में भजन कीर्तन किया करते थे।
सूरदास जी को कृष्ण भक्त माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन मे कई रचनाएं की व कविताएं लिखी। कृष्ण भक्ति मे लीन रहते थे और लोगों को अपने ज्ञान से सीख देते थे। सूरदास जी को उनकी कविताओं की वजह से याद किया जाता है।