भारत, अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां विभिन्न स्तरों पर चुनाव होते हैं, जैसे कि लोकसभा, राज्य विधानसभा, पंचायत और नगर निगम। हालांकि, बार-बार चुनाव होने से देश पर आर्थिक, प्रशासनिक और सामाजिक दबाव बढ़ता है। इसी संदर्भ में, “एक देश, एक चुनाव” (One Nation, One Election) की अवधारणा को लेकर चर्चा हो रही है। यह विधेयक भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की सिफारिश करता है।
इस पहल का उद्देश्य प्रशासनिक खर्च को कम करना, चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाना और शासन की दक्षता में सुधार करना है। “एक देश, एक चुनाव” का विचार विवादास्पद रहा है, लेकिन यह भारतीय लोकतंत्र और उसके प्रशासनिक ढांचे में बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
“एक देश, एक चुनाव” का अर्थ है कि देश में सभी स्तरों के प्रमुख चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इस अवधारणा के अनुसार:
- लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर होंगे।
- स्थानीय निकायों के चुनाव अलग रखे जा सकते हैं।
- चुनाव आयोग एक निश्चित समय-सारणी तैयार करेगा।
यह व्यवस्था 1952 से लेकर 1967 तक लागू थी, जब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। हालांकि, राजनीतिक अस्थिरता और विभिन्न सरकारों के समय से पहले भंग होने के कारण यह प्रक्रिया बाधित हो गई।
1. आर्थिक बचत
बार-बार चुनाव कराने में भारी मात्रा में धन खर्च होता है। चुनाव प्रचार, सुरक्षा व्यवस्था और अन्य चुनाव संबंधी खर्च देश के खजाने पर भारी बोझ डालते हैं। यदि सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
2. प्रशासनिक दक्षता
प्रत्येक चुनाव में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है। यह प्रशासनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न करता है। एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक मशीनरी अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सकती है।
3. शासन में स्थिरता
बार-बार चुनाव होने से राजनीतिक दलों का ध्यान शासन से हटकर चुनाव प्रचार पर केंद्रित हो जाता है। एक साथ चुनाव होने से सरकारों को अपने कार्यकाल के दौरान विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का अधिक समय मिलेगा।
चुनाव आयोग को बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया में भारी मेहनत करनी पड़ती है। यदि सभी चुनाव एक साथ हों, तो आयोग का कार्यभार कम होगा और वह अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगा।
5. मतदाता की सुविधा
एक साथ चुनाव होने से मतदाताओं को बार-बार मतदान केंद्रों पर जाने की आवश्यकता नहीं होगी। इससे मतदान प्रतिशत बढ़ सकता है।
1. संवैधानिक और कानूनी अड़चनें
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होते हैं। यदि किसी सरकार का कार्यकाल बीच में समाप्त हो जाए, तो नई सरकार का गठन कैसे होगा, यह एक बड़ा प्रश्न है।
2. राजनीतिक सहमति की कमी
यह विचार कई राजनीतिक दलों द्वारा विरोध का सामना कर रहा है। क्षेत्रीय दलों का मानना है कि यह संघीय ढांचे के खिलाफ है और केंद्र सरकार के पक्ष में असमानता पैदा कर सकता है।
3. लॉजिस्टिक और प्रबंधन समस्याएं
भारत जैसे बड़े देश में एक साथ चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती है। लाखों ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) और वीवीपैट की आवश्यकता होगी, और उनके रखरखाव और वितरण की प्रक्रिया जटिल हो सकती है।
4. स्थानीय मुद्दों की अनदेखी
जब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय मुद्दों पर हावी हो जाते हैं। इससे मतदाता क्षेत्रीय समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पाते।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1952 से 1967 तक, भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए। लेकिन 1968 और 1969 में कुछ राज्य विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं। इसके बाद, 1971 में लोकसभा चुनाव समय से पहले हुए। तब से लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर कराए जाने लगे।
हाल ही में, “एक देश, एक चुनाव” पर सरकार ने एक समिति का गठन किया है, जिसका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। इस समिति का उद्देश्य:
- इस पहल की व्यवहार्यता का अध्ययन करना।
- इसके लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधनों की पहचान करना।
- राजनीतिक दलों और जनता की राय लेना।
क्षेत्रीय दलों की चिंताएं
क्षेत्रीय दलों का मानना है कि “एक देश, एक चुनाव” से उनके अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो सकता है। राष्ट्रीय मुद्दों के प्रभाव में क्षेत्रीय मुद्दे दब सकते हैं, जिससे छोटे दलों की प्रासंगिकता कम हो सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
कई देशों में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनाव एक ही दिन होते हैं। हालांकि, भारत की भौगोलिक और राजनीतिक विविधता को देखते हुए, इस मॉडल को लागू करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सम्भावित समाधान
- चरणबद्ध तरीके से लागू करना
एक साथ चुनाव को तुरंत लागू करने के बजाय इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा सकता है। - कार्यकाल की स्थिरता सुनिश्चित करना
सरकारों के कार्यकाल की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए संविधान में संशोधन किया जा सकता है। - राजनीतिक सहमति बनाना
सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनाना आवश्यक है।
2024 का शीतकालीन सत्र भारत के संसदीय इतिहास में महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि “एक देश, एक चुनाव” विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया और पारित कर दिया गया। यह विधेयक अब राज्यसभा में चर्चा और मंजूरी के लिए जाएगा।
लोकसभा में विधेयक का प्रस्तुतिकरण
विधेयक को पेश करते हुए, सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि बार-बार चुनाव कराने से देश के विकास कार्य बाधित होते हैं। इसके अलावा, आर्थिक और प्रशासनिक खर्चों को कम करने के उद्देश्य से इसे एक ऐतिहासिक सुधार करार दिया गया।
मुख्य प्रावधान
- लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की समय-सारणी
विधेयक में एक विशेष प्रावधान शामिल है, जिसके तहत चुनाव आयोग सभी राज्यों के साथ सहमति बनाकर चुनाव कराने का कार्यक्रम तय करेगा। - संवैधानिक संशोधन
इस विधेयक को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन की आवश्यकता है। - विशेष समिति की सिफारिशें
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा दिए गए सुझावों को इस विधेयक में शामिल किया गया है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि यह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया। उनकी मुख्य चिंताएं हैं:
- संघीय ढांचे का खतरा: विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह विधेयक भारत के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है।
- छोटे दलों पर प्रभाव: क्षेत्रीय दलों ने आशंका व्यक्त की कि “एक देश, एक चुनाव” से उनके राजनीतिक मुद्दे और पहचान राष्ट्रीय मुद्दों के सामने दब सकते हैं।
आगे का रास्ता
यह विधेयक अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा। यदि वहां से भी इसे मंजूरी मिलती है, तो इसे लागू करने के लिए राज्यों की विधानसभाओं की सहमति की आवश्यकता होगी।
जनता की राय
“एक देश, एक चुनाव” विधेयक पर जनता की राय भी विभाजित है। कुछ इसे समय और धन की बचत का माध्यम मानते हैं, जबकि अन्य इसे एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती के रूप में देखते हैं।
निष्कर्ष
“एक देश, एक चुनाव” एक साहसिक और दूरगामी पहल है, जो भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बड़ा बदलाव ला सकती है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए संवैधानिक, राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियों का समाधान करना होगा।
यह पहल भारतीय लोकतंत्र को अधिक कुशल और आर्थिक रूप से टिकाऊ बना सकती है, लेकिन इसे लागू करने के लिए सभी हितधारकों के साथ विस्तृत चर्चा और सहमति की आवश्यकता है। यदि सही ढंग से क्रियान्वयन किया जाए, तो “एक देश, एक चुनाव” भारत की राजनीतिक व्यवस्था को अधिक संगठित और स्थिर बना सकता है।