पंडित नेहरू कैसे बने चाचा नेहरू? जानिए उनकी लोकप्रियता की वजह

jawaharlal nehru se chacha nehru banne ki kahani

नमस्कार दोस्तों, आज हम एक ऐसी प्यारी कहानी लेकर आए हैं जिसने हमारे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को ‘चाचा नेहरू’ बना दिया। यह कहानी सिर्फ नेहरू जी के जीवन की नहीं, बल्कि उनकी बच्चों के प्रति गहरी स्नेह और प्रेम को दिखाती है।

कहानी की शुरुआत

पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को हुआ था। देश के स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अहम भूमिका निभाई और भारत को आजाद कराने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री बने। लेकिन नेहरू जी की खासियत सिर्फ उनके राजनैतिक कद में नहीं थी, बल्कि उनके व्यक्तित्व में थी। उनके दिल में देश के भविष्य यानी बच्चों के लिए विशेष प्रेम और स्नेह था। उन्हें विश्वास था कि बच्चों में देश का भविष्य है, और इन्हें सही मार्गदर्शन और शिक्षा देने से ही भारत एक सशक्त राष्ट्र बन सकता है।

बच्चों के प्रति विशेष स्नेह

नेहरू जी का बच्चों के प्रति विशेष लगाव था। वे जब भी बच्चों से मिलते, उन्हें स्नेह और अपनेपन से गले लगाते। नेहरू जी हमेशा मानते थे कि बच्चे मासूम होते हैं और उनके अंदर सच्ची इंसानियत होती है। उनके अनुसार, बच्चों का मन बिलकुल कोरे कागज़ की तरह होता है, जिसमें समाज का भविष्य लिखा जाता है।

जब भी नेहरू जी कहीं दौरे पर जाते, वे बच्चों से जरूर मिलते, उनसे बातचीत करते, और उनकी मुस्कान का आनंद लेते। उनके लिए बच्चों के साथ समय बिताना, उनकी मासूमियत को महसूस करना बहुत ही खास होता था। वह बच्चों के लिए टॉफियाँ और चॉकलेट्स भी लाते थे, जिससे बच्चे उनसे और भी ज्यादा जुड़ाव महसूस करते थे।

बच्चों ने दिया ‘चाचा नेहरू’ का नाम

अब सवाल ये उठता है कि आखिर उन्हें “चाचा नेहरू” क्यों कहा जाने लगा? दरअसल, नेहरू जी का सादगी भरा और बच्चों के प्रति उनका आत्मीयता से भरा व्यवहार बच्चों के दिल को छू गया। उन्होंने नेहरू जी को ‘चाचा’ कहना शुरू कर दिया। यह नाम इतना प्रचलित हुआ कि सिर्फ एक शहर या राज्य में नहीं, बल्कि पूरे भारत के बच्चे नेहरू जी को “चाचा नेहरू” कहने लगे।

यह भी माना जाता है कि महात्मा गांधी, जिन्हें बच्चे ‘बापू’ कहकर पुकारते थे, नेहरू जी के साथ भी वैसा ही अपनापन महसूस करते थे। गांधी जी के रहते नेहरू जी को भी बच्चों के बीच में विशेष सम्मान मिलने लगा, और धीरे-धीरे यह नाम पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया।

बाल दिवस की शुरुआत

पंडित नेहरू का जन्मदिन 14 नवंबर को होता था, और उनके निधन के बाद यह दिन बच्चों के प्रति उनके प्रेम और स्नेह को याद करते हुए बाल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। बाल दिवस पर बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम, प्रतियोगिताएँ, और खेलों का आयोजन होता है, ताकि वे खुद को महत्वपूर्ण और विशेष महसूस कर सकें। इस दिन बच्चों को “चाचा नेहरू” की कहानियाँ सुनाई जाती हैं, ताकि वे जान सकें कि पंडित नेहरू ने उनके लिए कैसे एक बेहतर भारत का सपना देखा था।

बच्चों के लिए नेहरू जी की शिक्षा

पंडित नेहरू ने हमेशा बच्चों को शिक्षा का महत्व समझाने की कोशिश की। उनका मानना था कि शिक्षा ही वह हथियार है जिससे बच्चे अपने जीवन को सवार सकते हैं और देश को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं। उन्होंने बच्चों को हमेशा प्रोत्साहित किया कि वे निडर होकर सपने देखें और उन्हें पूरा करने का प्रयास करें।

उनका कहना था, “आज के बच्चे कल का भविष्य हैं।” इसलिए, उनका भविष्य उज्ज्वल बनाना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। इसी विचार के कारण पंडित नेहरू का बच्चों के प्रति विशेष जुड़ाव था।

चाचा नेहरू’ की विरासत

आज भी हर बच्चे की जुबान पर चाचा नेहरू का नाम है। स्कूलों और अन्य आयोजनों में उन्हें याद किया जाता है, उनके योगदानों को सराहा जाता है और उनकी कही बातें बच्चों को प्रेरित करती हैं। नेहरू जी का सपना था कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बने जहाँ हर बच्चा शिक्षित और स्वस्थ हो। उनके विचारों का अनुसरण करके हम भारत के बच्चों को सशक्त बना सकते हैं।

निष्कर्ष

तो दोस्तों, इस तरह पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने प्रेम, स्नेह, और आत्मीयता से बच्चों के दिल में एक खास जगह बनाई और बन गए हमारे सभी के प्यारे “चाचा नेहरू।” उनकी यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सच्चा नेता वह होता है जो देश के भविष्य, यानी बच्चों में अपना समय और प्रेम समर्पित करता है।

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