Chhath Maiya kaun hai, unse judi pauranik kathayen

छठ मैया की पूजा भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल में मनाया जाता है, लेकिन अब यह भारत के अन्य हिस्सों में भी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव और छठ मैया की आराधना करना है। छठ मैया की पूजा में सूर्य उपासना का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस पर्व को ‘सूर्य षष्ठी व्रत’ भी कहा जाता है, जिसमें भक्त चार दिनों तक उपवास रखते हैं और नदियों, तालाबों, या जलाशयों के किनारे खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।

इस लेख में हम छठ मैया, उनकी पूजा और उनसे जुड़ी प्रमुख पौराणिक कथाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

छठ मैया कौन हैं?

छठ मैया को प्रकृति की देवी माना जाता है और इन्हें षष्ठी देवी भी कहा जाता है। मान्यता है कि छठ मैया बच्चों की रक्षा करती हैं और परिवार में सुख-समृद्धि लाती हैं। हिंदू धर्म में छठ मैया को भगवान सूर्य की बहन माना गया है। इस वजह से सूर्य देव और छठ मैया की पूजा एक साथ की जाती है। छठ मैया की उपासना मुख्यतः परिवार की खुशहाली, संतान की रक्षा और रोग-निवारण के लिए की जाती है।

छठ मैया को छठी माता, षष्ठी माता, और देवी कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में इन्हें संतान की देवी कहा गया है, जो बच्चों की रक्षा और उनकी लंबी उम्र के लिए आशीर्वाद देती हैं। यह पर्व संतान सुख और परिवार में शांति बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

छठ मैया की पूजा का महत्व

छठ मैया की पूजा का महत्व अनेक धार्मिक और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव और छठी मैया को प्रसन्न करना है। सूर्य देव को स्वास्थ्य, ऊर्जा और जीवन का स्रोत माना जाता है, और छठ मैया को उनकी बहन के रूप में सम्मानित किया जाता है। सूर्य देव और छठ मैया की पूजा करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।

छठ पूजा के वैज्ञानिक लाभ

छठ पूजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्व है। इस पर्व में व्यक्ति उगते और डूबते सूर्य की किरणों का सेवन करता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। सूर्य की किरणों में कई प्रकार के औषधीय गुण होते हैं, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्य किरणों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है, जो शरीर को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करती है।

छठ मैया से जुड़ी पौराणिक कथाएं

छठ मैया की पूजा के पीछे अनेक पौराणिक कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। इनमें से प्रमुख कथाएं हैं – सीता जी द्वारा छठ पूजा, द्रौपदी और पांडवों द्वारा छठ पूजा, और कर्ण द्वारा सूर्य उपासना। आइए, इन कथाओं को विस्तार से जानते हैं।

1. सीता जी द्वारा छठ पूजा

रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम और माता सीता 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की। ऐसा माना जाता है कि अयोध्या लौटने के बाद माता सीता ने अपने परिवार की खुशहाली और संतान सुख के लिए छठ व्रत किया। इस व्रत में माता सीता ने सूर्य देव और छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए निर्जला व्रत रखा और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया।

यह भी कहा जाता है कि इस व्रत के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता को संतान सुख की प्राप्ति हुई और उनकी संतान लव और कुश का जन्म हुआ। इस प्रकार, सीता जी के द्वारा किए गए इस व्रत को भारतीय संस्कृति में छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा। यह मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान सुख प्राप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।

2. द्रौपदी और पांडवों द्वारा छठ पूजा

महाभारत काल में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। महाभारत की कथा के अनुसार, जब पांडव वनवास में थे और उन पर अनेक विपत्तियां आईं, तब द्रौपदी ने अपने परिवार की रक्षा और समृद्धि के लिए छठ व्रत किया। उन्होंने भगवान सूर्य की आराधना की और उनसे सहायता की प्रार्थना की।

सूर्य देव की कृपा से पांडवों को सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिली और उनके परिवार में सुख-समृद्धि लौट आई। इस कथा से यह भी स्पष्ट होता है कि छठ व्रत से संतान और परिवार की रक्षा होती है और हर प्रकार की समस्याओं का समाधान मिलता है।

3. कर्ण द्वारा सूर्य उपासना

महाभारत में एक और कथा कर्ण से जुड़ी हुई है, जो भगवान सूर्य के परम भक्त थे। कर्ण हर दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव की आराधना करते थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी सूर्य उपासना का त्याग नहीं किया। कर्ण को सूर्य पुत्र भी कहा जाता है, और वह अपनी शक्ति और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध थे।

ऐसा कहा जाता है कि कर्ण ने कठिन तपस्या और सूर्य उपासना के माध्यम से अपनी शक्ति को बढ़ाया था। उन्होंने सूर्य देव से यह वरदान प्राप्त किया कि वह युद्ध में अद्वितीय रहेंगे। उनकी सूर्य भक्ति इतनी प्रबल थी कि वह हर दिन जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते थे। इस प्रकार कर्ण की सूर्य उपासना छठ पूजा की परंपरा से भी जुड़ी मानी जाती है।

4. षष्ठी देवी की कथा

छठ मैया को षष्ठी देवी के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, षष्ठी देवी संतान की रक्षा करने वाली देवी हैं। उन्होंने भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि के निर्माण के समय संतान के संरक्षण का कार्य संभाला था।

एक अन्य कथा के अनुसार, एक समय राजा प्रियंवद को संतान न होने का दुख था। उन्होंने अपने राज्य में संतान प्राप्ति के लिए अनेक यज्ञ और हवन कराए, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं मिली। तब महर्षि कश्यप ने उन्हें षष्ठी देवी की पूजा करने का सुझाव दिया। राजा प्रियंवद ने षष्ठी देवी की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्र रत्न का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार षष्ठी देवी की पूजा संतान सुख के लिए की जाती है और उनकी आराधना से संतान की रक्षा होती है।

छठ पूजा की विधि

छठ पूजा चार दिनों का पर्व है, जिसमें हर दिन का अपना महत्व और विधि होती है। आइए, इन चार दिनों के पूजा की विधि को समझते हैं।

1. नहाय-खाय (पहला दिन)

छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और अपने मन को शुद्ध करते हैं। इसके बाद व्रती शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें लौकी की सब्जी, चने की दाल और चावल का सेवन किया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और आगामी व्रत के लिए तैयारी करना होता है।

2. खरना (दूसरा दिन)

दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम के समय सूर्यास्त के बाद पूजा करते हैं। इस पूजा में व्रती गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी का प्रसाद बनाते हैं और इसे ग्रहण करते हैं। खरना का प्रसाद लेने के बाद व्रती अगले दिन तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहते हैं।

3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)

तीसरे दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम के समय नदी या तालाब किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस पूजा में बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, और अन्य प्रसाद को रखा जाता है। यह अर्घ्य सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है।

4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन)

चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का समापन होता है। व्रती सुबह जल्दी जलाशय पर पहुंचते हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं और व्रत को पूर्ण करते हैं।

छठ पूजा का प्रसाद और सामग्री

छठ पूजा में उपयोग की जाने वाली सामग्री का भी विशेष महत्व होता है। इसमें ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना, सूप, दीपक और अन्य वस्त्रों का उपयोग किया जाता है। छठ पूजा का प्रसाद पवित्र माना जाता है, और इसे परिवार में बांटा जाता है।

ठेकुआ: आटे और गुड़ से बनाया गया मीठा व्यंजन, जिसे पूजा के प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
गन्ना और नारियल: पूजा सामग्री में विशेष रूप से शामिल होते हैं।
सूप और डलिया: पूजा सामग्री रखने के लिए बांस से बने सूप और डलिया का उपयोग होता है।
दीपक और अगरबत्ती: पूजा में वातावरण को पवित्र और सुगंधित बनाने के लिए।

निष्कर्ष

छठ मैया की पूजा भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व रखती है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। छठ मैया से जुड़ी पौराणिक कथाएं हमें यह संदेश देती हैं कि इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शुद्धि प्राप्त होती है। छठ पूजा का उद्देश्य न केवल सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करना है, बल्कि इसमें परिवार की खुशहाली, संतान की रक्षा, और रोग-निवारण की भी कामना की जाती है।

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